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कविता

इंद्र निज हेरत फिरत गज इंद्र

भूषण


इंद्र निज हेरत फिरत गज इंद्र अरु,
इंद्र को अनुज हेरै दुगधनदीस को।
भूषण भनत सुरसरिता कौं हंस हेरै,
विधि हेरै हंस को चकोर रजनीश को।
साहितनै सिवराज करनी करी है तैं,
जु होत है अचंभो देव कोटियो तैंतीस को।
पावत न हेरे जस तेरे में हिराने निज,
गिरि कों गिरीस हेरैं गिरजा गिरीस को।।


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